लोकतंत्र के कान्हा खाएँ
खुद मिसरी-माखन
और भूख से
निशि-दिन
मरता सारा वृंदावन।
चारा-भूसा सबका
सब
नित ग्वाले खा जाएँ
तिनके-तिनके को
मारी-मारी
फिरती गायें
बूँद-बूँद गोरस को
तरसे
राधा का बचपन।
भरी सभा में
लूटी जाती
दुखिया-पांचाली
चीरहरण को देख
बजाते
सभाध्यक्ष ताली
दुर्योधन-दुःशासन
मिलकर
भोगें सिंहासन।
खून सने
यमुना के तट
वीरान कुंज-गलियाँ
पल दो पल की
मुस्कानों को
तरस रही कलियाँ
खड़े घात में
विषधर
पग-पग पर फैलाए फन।